Friday, 27 July 2018

कहाँ है सब्र?

सब्र चाहिए मुझे।
परेशां हूँ ।
निकलता हूँ।
अपने डेरे से रोज।
उसके लिए।
कहाँ मिलेगा।
ये सब्र।
सब्र चाहिए मुझे।
मन अपने गति से।
भी अधिक।
ढूंढ़ता है उसे।
पूरी दुनिया।
देखता है मन।
पूरे सब्र से।
लेकिन सब है।
बस नही है।
वो ही।
सब्र नही है।
कहाँ ये सब्र।
सब्र चाहिए मुझे।
सब कहते है।
सब्र से रहो।
सब्र से खाओ।
सब्र से पीओ।
सब्र से घूमो।
सब्र से जीओ।
सब्र से पढ़ो।
इश्क़ में सब्र रखो।
सब्र से चलो।
सब्र से चिंतन करो।
कहाँ ये सब्र।
मुझे चाहिए सब्र।
पोथी भी पढ़ी।
वो भी सब्र से।
सुना है।
ये सब्र को।
समझा देती है।
यहाँ भी।
मन अपनी गति में।
सब्र न रखा ।
फिर न मिला मुझे।
तो बस वो ही सब्र।
कहाँ है ये सब्र।
सब्र चाहिए मुझे।
फिर से सोचा।
घूमते है जहाँ।
पढ़ते है पोथी।
लेकिन सबके बाद।
मिला सच में।
सब्र के रूप में
एक सब्र का सच।
सब सब्र देते है।
सब सब्र बताते है।
सब्र मिलता है।
अपने आप से ।
अपने सब्र से।
अपने आत्म से।
अपने सोच से।
अपने भरम।
उसे खत्म करने से।
मिलता है सब्र।
सच को सब्र से।
सुनने में।
अब यही है सब्र।
अभी मिला है सब्र।
ढूंढ़ लिया है सब्र।
अब नही छूटेगा।
ऐसा सब्र।
मुझे चाहिए था सब्र।
अब सब्र से हूँ।
बस यही तो है सब्र।
रचनाकार-
अंकित चौरसिया
दिल्ली विश्वविद्यालय।

Sunday, 1 July 2018

सीबीएसई राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा (नेट)/ जेआरएफ विशेष, विषय दर्शनशास्त्र पर ।

आज एक जुलाई हो चुकी है और आठ जुलाई को राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा (नेट) का एक्जाम होने वाला है। अगर अब आपके पास केवल इतना ही समय हो तो आप कैसे करे तैयारी, इस पर कैसे अपनाये रणनीति जिससे आप सफल हो सके इस नेट परीक्षा में। चलिये दर्शनशास्त्र (Philosophy)विषय पर एक नजर डालते है-

1- सर्वप्रथम आप उन्ही टॉपिक को पढ़े जो आप पढ़ चुके हो।
2- उन टॉपिक को चुने जो पढ़ने में सरल हो और उनसे प्रश्न भी खूब आते हो।
3- प्रश्न-पत्र पर दिन में कम से कम 10 बार नजर जरूर डालना है जिससे पता चले किस टॉपिक से क्या आना है और क्या-क्या महत्वपूर्ण भी है।
अब मैं कुछ टॉपिक को बताता हूं जिन्हें आप इन सात दिनों में भी पढ़कर नेट/जेआरएफ परीक्षा को क्वालीफाई कर सकेंगे-
जो इस प्रकार है-

1- भारतीय दर्शन
वैश्विक व्यवस्था में ऋत की अवधारणा/अनृत की अवधारणा,पुरुषार्थ, वर्ण-व्यवस्था, ऋण के प्रकार, जीव की चार अवस्थाएं(जाग्रत,स्वप्न,सुषुप्ति और तुरीय) और  ब्रह्मविहार(बौद्ध इतिहास से)
२- भारतीय दर्शन में जितने भी दर्शन है उनमें निम्न अवधारणाओं को जरूर देखें-
मोक्ष,आत्मा, जीव, जगत, कारणता-सिद्धान्त, बंधन, जगत की उत्पत्ति और मूल तत्वों की संख्या , प्रमाण, प्रामाण्यवाद और दर्शनो की ख्याति और इनकी ज्ञानमीमांसा और तत्वमीमांसा।
- अंविताविधानवाद, अभिहितांवयवाद, संकेतग्रह, वृत्ति आकांक्षा, सन्निधि,योग्यता और तात्पर्य। शब्द और अर्थ और इनमे सम्बन्ध विशेषकर मीमांसा और न्याय में।

पाश्चात्य-दर्शन और ग्रीक दर्शन-

3- पूर्व-ग्रीक दर्शन में प्रकृतिवादी दर्शन, सोफिस्ट में प्रोटेगोरस, ग्रीक में प्लेटो और अरस्तू।
4- पाश्चात्य में बुद्धिवादी(डेकार्ट, स्पिनोजा और Leibnitz) अनुभववादी में लॉक, बर्कले और ह्यूम।
5- जर्मन दार्शनिको में, कांट, हीगेल और हुर्सल(फेनोमोलॉजिस्ट) को छोड़ने की गलती कतई न करे। अधिक मात्रा में प्रश्न यहाँ से पूछे जाते है।
6- अस्तित्ववादी दर्शन में किर्केगार्ड, satre, हाइडेगर।
7- भाषावादी दार्शनिको में विट्सगेस्टीन(1 और 2), लॉजिकल पोसिटिविस्म(एयर), रसेल , फ्रेगे और ऑस्टिन।
8- मनस-दर्शन में आप गिलवर्ट राएले को देख सकते है एक या दो प्रश्न आ जाते है यहाँ से।
9- व्यहारवाद और उपयोगितावाद में आप विलियम जेम्स, पियर्स और जॉन डिवी को देखे।

पाश्चात्य दर्शन को आप 7 दिन में इतना कर सकते है।

सामाजिक राजनीतिक दर्शन और नीतिशास्त्र और अधिनीतिशास्त्र(मेटा-एथिक्स)-
10- हाब्स, लॉक, रूसो और गाँधी जी, प्लेटो और अरस्तू में न्याय-सिद्धान्त।
11- नीतिशास्त्र में दंड-सिद्धान्त, गांधी जी, उपयोगितावादी और सुखवादी दर्शन में बेन्थम और मिल, सद्गुण(प्लेटो और अरस्तू), और de-ontology, normative, consequences and action centre theory और कांट का नैतिक दर्शन।
12- मेटा-एथिक्स में मूर, एयर, स्टीवेंसन, रॉस, प्रिचर्ड, स्मिथ और cognivist and non-cognivist, error theorists , moral realist, naturalist and non-naturalist , intuitionismको अवश्य देखे।

लॉजिक-
13- सत्यता और वैधता(truth and validity), निरपेक्ष न्यायवाक्य(categorical syllogism), परंपरागत विरोध तर्क(traditional square of opposition), विचार के नियम, अनुमान के नियम और विस्थापन के नियम।

समकालीन भारतीय दर्शन-
14- जिद्दू कृष्णमूर्ति, टैगोर, अरविन्द, के सी भट्टाचार्य, गांधी और अम्बेडकर। इनके किताबो के नाम भी। इनसे प्रश्न अनिवार्य ही है।

इन सात दिनों में आपने एक नियम के तहत अगर इतना कर लिए तो आप बाकई सफल हो सकते है। आपके साथ मेरी शुभकामनाए है। लगे रहिये।डटे रहिये। मंजिल जरूर मिलेगी। बशर्ते धैर्य अनिवार्य है।
धन्यवाद।

अंकित चौरसिया
नेट/ जूनियर रिसर्च फेलो
फॉर्मर आईसीपीआर फेलो
पीएचडी शोध छात्र
दर्शन विभाग
दिल्ली विश्वविद्यालय...

Friday, 25 May 2018

मैं और मेरा संघर्ष।

जब मैं आया।
दिल्ली विश्वविद्यालय में।
सोचकर आया था।
इलाहाबाद की तरह।
भाषा पढ़ूँगा यहाँ स्वदेशी।
लेकिन भैया।
यहाँ पढाई जाती थी।
कठिन अंग्रेजी।
फिर थोड़ा सिसके।
और मेरे कदम।
थोड़ा पीछे खिसके।
फिर सोचा।
न भैया।
मैं तो रहूँगा।
बिलकुल अडिग।
क्योंकि मैं आया था।
अपनी माँ की उम्मीदों सहित।
जब मैं आया।
दिल्ली विश्वविद्यालय में।

Thursday, 17 May 2018

राजनीति और लोकतंत्र।

जब हुआ मतदान।
खूब बाँटा गया।
दारू और राशन-दान।
देश की जनता।
समझ वैठी।
यही है।
राजनीति का।
अमूल्य-दान।
लेकिन।
भईया जब वैठे।
गद्दी पर।
वही राशन-दान।
बन गया।
बिलकुल विषपान।
क्योंकि अब हुआ।
अपना-अपना।
राम-राम।
लेकिन।
इसका क्या हो।
समाधान।
इसलिए।
भारतीय राजनीतिक पार्टियों को।
अंकित चौरसिया का।
प्रणाम।🙏

Tuesday, 15 May 2018

हमारा इलाहाबाद।अपना इलाहाबाद।

मैं बात कर रहा हूँ इलाहाबाद शहर की। उस शहर की जहाँ आया हुआ हरेक एकाएक उसका हो जाता हैं।उसे अपना बना लेता है।उसमें डूब जाता है। उस शहर में न जाने कौन सी चुम्बक है जो अनवरत रूप से खींचती रहती है।कही भी रहो, हजारो किलोमीटर दूर रहने के बाबजूद भी वो चुम्बकीय क्षेत्र उसे नही छोड़ता। जो यहाँ रहा है, इससे बाहर जाकर भी अपने जेहन में एक इलाहाबाद जरूर रखता है। यहाँ रहना भी एक सौभाग्य सा है बाकई इस शहर की मिट्टी में दार्शनिको की सोच और साहित्य का समागम अयुतसिद्ध रूप से अन्तर्निहित है।जिसे हर पल महसूस भी किया जा सकता है।यही कारण है यहाँ रहने वाला प्रत्येक वासी और प्रवासी दर्शन और साहित्य से अछूता नही रह सका। यही सौभाग्य मिला था मुझे भी कभी। अगर कोई इलाहाबाद पर कुछ भी लिखता है तो आज भी अजब सी परेशानी होती है और उस पल ही पूरा इलाहाबादी हो जाता हूँ। वैसे लिखते-लिखते कीड गंज से गऊघाट, यूइंग क्रिश्चियन कालेज जिसमे मैं पढ़ा,सोचा और बहुत कुछ समझा, कटरा से यूनिवर्सिटी चौराहा से होते हुए हॉस्टल, लक्ष्मी टॉकीज से मम्फोर्डगंज एक फिर से मुझे, मेरे जेहन में स्मृति रूप में यादगार लम्हो को ताजा कर दिया। वैसे इस शहर को मैं कुछेक शब्दो में सिमट नही सकता । आगे भी लिखूँगा।मिलते है फिर यादगार लम्हो के साथ।जय इलाहाबाद।जय दर्शन-नगरी।जय त्रिवेणी।जय प्रयागराज।

Monday, 14 May 2018

शायरी -कुछ बाकि है।

दीदार-ए-फ़कत की इल्तिज़ा।
मंजूर होना अभी भी बाकि है।
मयखाने में शाम-ए-गुफ्तगू।
इस रूह को ।
उस रूह में होना।
अभी बाकि है।
ऐ हुश्न की मल्लिका।
तेरा ये जान जाना।
अभी भी बाकि है।
थम जाये ये साँसे।
एक दो लम्हो के लिए भी।
ऐसा बंदोबस्त।
अभी भी बाकि है।
मौसम भी अपना।
रुख बदलने लगे है।
लेकिन तेरा ।
आना और जाना ।
अभी भी बाकि है।

Monday, 7 May 2018

शायरी- दिलो में गुफ्तगू।

आपको चाहना ।
मेरी आदतों का पुलिंदा बन गया।
जब सोचा छोड़ दूँगा तुम्हे।
वही शाम मेरी शहादत का रहनुमा बन गया।
अब बता ऐ खुदा!
किसने बनाई ऐसी कुदरत?
क्योंकि मेरी एक-एक साँस।
उसका नपा-तुला तराजू बन गया।
लेकिन एक तो जबरजस्त बात है उसमें।
जब-जब सोचा।
वो दिन ही शमाँ से बंध गया।
न जाने क्यों।
आपको चाहना।
मेरी आदतों का पुलिंदा बन गया।