दीदार-ए-फ़कत की इल्तिज़ा।
मंजूर होना अभी भी बाकि है।
मयखाने में शाम-ए-गुफ्तगू।
इस रूह को ।
उस रूह में होना।
अभी बाकि है।
ऐ हुश्न की मल्लिका।
तेरा ये जान जाना।
अभी भी बाकि है।
थम जाये ये साँसे।
एक दो लम्हो के लिए भी।
ऐसा बंदोबस्त।
अभी भी बाकि है।
मौसम भी अपना।
रुख बदलने लगे है।
लेकिन तेरा ।
आना और जाना ।
अभी भी बाकि है।
बहुत सुंदर मित्र
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