Friday, 25 May 2018

मैं और मेरा संघर्ष।

जब मैं आया।
दिल्ली विश्वविद्यालय में।
सोचकर आया था।
इलाहाबाद की तरह।
भाषा पढ़ूँगा यहाँ स्वदेशी।
लेकिन भैया।
यहाँ पढाई जाती थी।
कठिन अंग्रेजी।
फिर थोड़ा सिसके।
और मेरे कदम।
थोड़ा पीछे खिसके।
फिर सोचा।
न भैया।
मैं तो रहूँगा।
बिलकुल अडिग।
क्योंकि मैं आया था।
अपनी माँ की उम्मीदों सहित।
जब मैं आया।
दिल्ली विश्वविद्यालय में।

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